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Friday 2 June 2017

हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण (नोट्स)

 हिंदी साहित्य के अधिकांश लेखकों ने प्रवित्तियों के आधार पर हिंदी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन किया हैं। साहित्य और समाज का संबंध इतना अधिक परस्पर है कि दोनों एक दूसरे को छोड़कर विकसित नहीं हो सकते इसीलिए सामाजिक चित्तवृत्तियों के संचित कोष को ही 'साहित्य' कहा गया है। सृष्टि के प्रत्येक तत्त्व की एक निर्धारित आय होती है।अतः अवलक्षित परिवर्तन क्रम में भी एक स्थायिन्व का भान होता रहता है। इसके आधार पर कालगत विशेषताओं का निरूपन किया जाता है। ठिक ऐसी ही स्थिति साहित्य के क्षेत्र में भी देखने को मिलती हैं। साहित्य को प्रेरणा प्रदान करने वाले चेतन तत्त्वों में अनेकता विद्यमान रहती है। उनमे से किसी ना किसी प्रकार की  ऐसी विशिष्ट चेतना का कुछ काल के लिए उदय होता है, कि जिससे अनेकता में एकता की स्थापना होती हैं। इसी एकता को आधार मानकर साहित्य में काल विशेषता का निर्धारण किया जाता है। प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर किया गया नामकरण सवर्था पूर्ण नहीं होता।इसी प्रकार जितने भी काल विभाजन हिंदी साहित्य के इतिहास में हुए उन सब की अपनी अपनी सीमायें हैं।
           
                                                    हिंदी साहित्य का सर्वप्रथम इतिहास लेखक 'फ्रेंच'  विद्वान 'गार्सा -द-तासी' हैं। उन्होंने फ्रेंच भाषा में  'इस्तवार -द - ला ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी'  नामक ग्रंथ लिखा। इनका ग्रंथ 'दो' भागों में प्रकाशित हुआ है। हिंदी के कवि एवं काव्य का क्रमानुसार रचनाकाल सर्वप्रथम इसी ग्रंथ में देखने के लिए मिलता हैं। प्रस्तुत ग्रंथ अंग्रेजी के वर्णक्रमानुसार लिखा गया है, कवियों के काल-क्रमानुसार नहीं। ग्रंथ में दोष होने के बावजूद भी उसे ही प्रथम इतिहास मानने में आलोचक एवं इतिहासकारों की भूमिका महत्वपूर्ण हैं।
    गार्सा-द-तासी के बाद हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन का प्रयास 'शिव सिंह सेंगर' को जाता है।उनका  'शिव सिंह सरोज' सन १८८३  में एक   सहसत्र  भाषा कवियों केे जीवन चरित्र  और  उनकी कविताओं के उदाहरण सहित  प्रकाशित हुुआ ।इस ग्रंथ में कवियों के जन्म - काल, रचना-काल आदि का संकेत दिया गया है। फिर भी इतिहासकार इस ग्रंथ को विश्वासनीय नहीं मानते। अतः आगे चलकर इतिहास का व्यवस्थित लेखन करनेवाले इतिहासकारों ने इसी को आधार रूप से ग्रहण किया।
                          गार्सा-द-तासी और शिव सिंह सेंगर का ध्यान काल विभाजन की ओर नहीं गया अतः काल विभाजन के संदर्भ में सबसे पहला प्रयास करने का श्रेय 'जॉर्ज ग्रियर्सन'  को  है । उन्होंने 'द मार्डन वर्नाक्युलर लिट्रेचर ऑफ हिन्दुस्थान' नामक ग्रंथ लिखा।  उनके द्वारा काल विभाजन इस प्रकार से है:-                          
  1. चारन काल
  2. पंद्रहवीं सदी का धार्मिक पुर्नजागरण       
  3. जायसी की प्रेम कविता
  4. व्रज का कृष्ण सम्प्रदाय 
  5. मुगल दरबार
  6. तुलसीदास
  7. रीतिकाल
  8. अठारहवीं शताब्दी
  9. तुलसीदास के अन्य प्रवर्तक
  10. कंपनी के शासन में हिंदुस्तानी
  11. महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तानी
                                                              इस प्रकार उनका ग्रंथ इन ग्यारह कालखण्डों में विभक्त हैं।जो वस्तुतः युग विशेष के योतक नहीं लगते।इनमें इनके अध्यायों के शीर्षक अधिक है।अतः जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा किया गया काल विभाजन पूर्णतः स्पष्ट नहीं है। आगे चल कर 'मिश्र बंधुओं' ने अपने 'मिश्र बंधु विनोद' (१९१३) में काल विभाजन का नया प्रयास किया जो प्रत्येक दृष्टि से जॉर्ज ग्रियर्सन के किये गए प्रयास से बहुत अधिक विकसित कहा जा सकता है। उनके द्वारा किया गया काल विभाजन इस प्रकार है:-

1.प्रारम्भिक काल:- 

(क):-  पूर्वारम्भिक काल (७००-१३४३)
(ख):- उत्तरारंभिक काल (१३४३-१४४४)

2.माध्यमिक काल:-
(क):- पूर्वमाध्यमिक काल (१४४५-१५६०)
(ख):- प्रोढ माध्यमिक काल (१५६१-१५८०)

3.अलंकृत काल:-
(क):-पूर्वालंकृत काल (१५८१-१७९०)
(ख):-उत्तरालंकृत काल (१७९१-१८८९)

4.परिवर्तन काल:- (१८९०-१९२४)

5.वर्तमान काल:- (१९२६- अब तक)
                                                  जहाँ तक पद्धति कि बात है मिश्र बंधुओं द्वारा किया गया यह वर्गीकरण बहुत समव्येत और स्पष्ट है।किंतु तथ्यों की दृष्टि से इनमें भी अनेक विसंगतियाँ विदयमान हैं। मिश्र बंधुओं के बाद 'आचार्य रामचंद्र शुक्ल' 'हिंदी साहित्य का इतिहास'  पुस्तक(१९२९) में प्रस्तुत करते हुए साहित्य के इतिहास का काल विभाजन इस प्रकार किया है:-
1. आदिकाल (वीरगाथा काल ):- (१०५०-१३७५)
2.पूर्वमध्य काल (भक्ति काल):- (१३७५-१७००)
3.उत्तरमध्य काल (रीतिकाल):-  (१७००-१९००)
4.आधुनिक काल (गद्य काल):-  (१९००- अब तक)
                                                                  आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काल विभाजन में अधिक सरलता स्पष्टता एवं सुबोधता दिखाई पड़ती हैं।इसी कारण इनके द्वारा किया गया काल विभाजन बहुमान्य एवं बहुप्रचलित हैं। 
                                                        शुक्लोत्तर इतिहास में डॉ.'रामकुमार वर्मा' का काल विभाजन भी उल्लेखनीय हैं।जिन्होंने नया काल विभाजन प्रस्तुत किया वह इस प्रकार से है:-
1.संधि काल :-  (७५०-१०००)
2.चारण काल:- (१०००-१३७५)
3.भक्ति काल:- (१३७५-१७००)
4.रीति काल :- (१७००-१९००)
5.आधुनिक काल:- (१९००-अब तक)
                                                 इस विभाजन को शुक्ल जी के काल विभाजन का प्ररकृन रूप नह कहा जा सकता । फिर भी वर्मा जी ने थोड़े अंशी में आचार्य शुक्ल जी की एड़ी को त्याग ने का साहस अवश्य किया। 
                                               इसके बाद 'आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र' जी ने अपने 'हिंदी साहित्य के अतीत' में ही रीतिकाल के नामकरण के क्षेत्र में नया प्रयास करने हेतु शेष बातों में पूर्ववर्ती परम्परा का निर्वाह किया है।उनके द्वारा किये गए काल विभाजन एवं नामकरण को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है:-
1.आदि काल:-(१०००-१४००)
2.मध्यकाल:-(१४००-१८५०)
(क):- पूर्वमध्य काल:- (भक्तिकाल) (१४००-१६५०)
(ख):-उत्तरमध्य काल :- (रीति और श्रृंगार साहित्य):- (१६६०-१८५०)
3.आधुनिक काल:- (१८५०- से अब तक)
(क):-हिंदी गद्य:- (आरंभ) (१८५०-१८६८)
(ख):-भारतेंदु काल:- (पूर्नजागरण) (१८६८-१९००)
(ग):- छायावाद काल:- (१९१८-१९३६)
(घ):-छायावादोत्तर काल
(च):- प्रगतिवाद काल:- (१९३८-१९४३)
(छ):-प्रयोगवाद/नयी कविता:- (१९४३-१९६०)
(ज):-नवलेखन काल/ समकालीन:- (१९६०- अब तक)।
                   
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